अमित और सविता कि शादी वैसे तो एक दूसरे को देखने और सहमति से हुई थी मगर अभी एक साल भी नहीं बीता होगा की उनके रिश्ते की गाँठ ढीली होने लगी थी। हो सकता है ये बदलते वक्त के कारण हुआ हो या फिर उनके रिश्ते ने पूरा वक्त लिया ही नहीं जिससे वो जड़ें जमा सके। एक दूसरे को समझ पाते इससे पहले ही उनके रिश्ते में दरारे दिखने लगी थी।
'आ गए आप....आज कहाँ रुक गए थे...ऑफिस में काम क्या ज्यादा था ' सविता ने ससोई में जाते हुए पूछा।
' नहीं, ऐसा कुछ नहीं..कोई दोस्त मिल गया था, उसी के पास वक्त लग गया...माँ ने खाना खा लिया... लगता है सो गयीं।
' कब की सो गयी...तुम्हे माँ कि बड़ी चिंता लगी रहती है...तुमने मेरे बारे में भी कभी पूछा है....पूरा दिन कैसे काटती हूँ...मगर तुम्हे इससे क्या लेना देना ... तुम खुश तुम्हारी माँ खुश ... ' सविता ने कहा।
'देखो मैंने तुम्हे कई बार समझाया है, बूढ़े और बच्चों का दिल एक जैसा होता है.. वो चाहते हैं कि उनके अपने उनका ख़याल रखें ... और अगर हम ही उनका खयाल नहीं रखेंगे तो रखेगा कौन। समाज और परिवार हमें यही तो सिखाते हैं, नहीं तो तुमने कल टीवी पर देखा था विदेशों में बूढों को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ... वैसे तुम्हे कौनसी परेशानी है जिससे तुम्हे दिन को काटना पडता है'
'तुम ही बताओ, क्या मैंने इतनी पढ़ाई इसीलिए ही की थी ... बस सारा दिन घर में पड़े रहो ... मेरे भी जीवन के कुछ सपने हैं .... मैंने तुम्हे पहले भी बताया था मैं ऐसे ज्यादा दिन नहीं निकाल सकती ... लेकिन तुम्हे कहने से क्या फायदा, तुम्हारा तो वो ही रटा रटाया जवाब होगा...माँ की सेवा करो...घर की देखभाल करो..जरा सोच कर देखो, तुम जैसी जिंदगी मुझे देना चाहते हो, क्या तुम खुद के लिए भी ऐसी जिंदगी चाहोगे...कभी कभी तो मुझे लगता है जैसे तुम्हे पत्नी नहीं कोई नौकरानी चाहिए '
' सविता, घर के काम करना, माँ की सेवा करना क्या नौकरानी का काम है ... तुम्हे किस चीज की कमी है ... जब देखो नौकरी करुँगी ... नौकरी करुँगी ... क्या घर पर रहकर अच्छी जिंदगी नहीं बिताई जा सकती, मैं चाहता हूँ कि तुम घर में रहो, किसी चीज कि कमी हो तो मुझे बताओ लेकिन तुम्हारी नौकरी करने की जिद मुझे मंजूर नहीं '
