मुझमें अभी कुछ तो शर्म बाकी है
होली का दिन नजदीक था। रामप्रसाद गाँव जाने के लिए बस स्टैंड पर खड़ा बस का इंतजार कर रहा था। सभी बस यात्रियों से ठसाठस भरकर आ रही थीं। दो तीन बस छोडने के बाद आखिरकार रामप्रसाद ने सीकर जाने वाली आखिरी बस पकड़ने में ही भलाई समझी। बस में पैर रखने तक की भी जगह नहीं थी। जैसे तैसे रामप्रसाद बस में अटक और लटक ही गया। टेम्पू वाले भी बस को ओवरटेक करने लगे तो बस की रफ़्तार का आभाष होने लगा। जब कुछ यात्री अपने गंतव्य पर उतरे तो रामप्रसाद को भी एक सीट बैठने को मिल गयी। रामप्रसाद की बगल वाली सीट पर एक बुजुर्ग बैठे थे जो काफी सुलझे हुये विचारों के लग रहे थे। बस धीरे धीरे आगे बढ़े जा रही थी। तभी अगले स्टैंड पर कुछ विद्यार्थी और एक महिला यात्री बस में चढ़े। विद्यार्थियों की बहस महिला से सीट पर बैठने को लेकर होने लगी। मामला गाली गलोंच तक बढ़ गया। कुछ यात्री महिला की तरफ बोले तो विद्यार्थी उनसे हाथापाई करने को उतारू हो आये। विद्यार्थियों ने बस भी रुकवा दी। सभी यात्री अपने अपने तरीके से समस्या का हल निकाल रहे थे क्यों की बस को ठहरे आधा घंटा होने को आया था। विद्यार्थियों ने परिचालक से चुप रहने की धमकी देते हुये कहा की यदि वो उन्हे सीट नहीं दिलवाएगा तो कल बस के सारे शीशे तोड़कर उसे हवामहल बना देंगे।
आखिरकार रामप्रसाद के बगल में बैठे बुजुर्ग ने अपनी सीट विद्यार्थियों को देते हुये कहा " बेटे तुम्हे सीट ही तो चाहिए न.....तुम मेरी सीट पर बैठ जाओ....लेकिन बस को तो चलने दो.........सभी लोग काफी परेशान हो रहे हैं.....मेरी बूढ़ी हड्डियों में अभी इतनी जान बाकी है की वो मुझे सहारा दे सकें।" विद्यार्थियों ने आव देखा ना ताव और तुरंत ही बुजुर्ग की सीट पर चील झपट्टा मार उसे हथिया ली। उन्होंने थोड़ी ही देर में बगल की दोनों सीटों पर भी मालिकाना हक जता दिया। मामला थोड़ा ठंडा होने पर बस फिर से चलने लगी।
रामप्रसाद ने अपनी सीट पर बुजुर्ग कोबैठाते हुए कहा " दादा आप मेरी सीट पर बैठ जाइए, क्यों की मुझमें अभी कुछ तो शर्म बाकी है।" विद्यार्थी मोबाइल में ऊटपटाँग गाने सुनने में व्यस्त थे। बस जिस रफ्तार और परिस्थियों में चल रही थी उससे रामप्रसाद को लगने लगा था कि बस रात होने से पहले सीकर नहीं पहुँचने वाली। शायद उसे सीकर से गाँव पैदल ही जाना होगा।
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