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चिड़िया का घौंसला


आज रामप्रसाद की माँ घर की सफाई में जुटी थीं। अपने कमरे से चिड़ियों के घौंसले को हटाने के बाद माँ ने रामप्रसाद के कमरे में जाकर कहा "ले बेटा, तेरे कमरे की भी सफाई कर दूँ। तेरे कमरे में भी.....वो देख एक चिड़िया का घौंसला है......सारा दिन कचरा करती रहती हैं.......ऊपर से शोर मचा कर सोने भी नहीं देतीं....चल मेज इधर सरका।

रामप्रसाद ने माँ को रोकते हुए कहा " माँ, तुमने तुम्हारे कमरे का घौंसला हटा दिया है, इस पर मुझे कुछ नहीं कहना, लेकिन मेरे कमरे से घौंसला मत हटाओ......इसे यहीं रहने दो। माँ, एक बात बताओ.....तुम भी घौसला हटा दोगी.....मैं भी हटा दूंगा....पड़ौसी भी हटा देंगे.....जब सभी हटा देंगे तो ये चिड़िया आखिर जाएगी कहाँ। ये धरती माँ तो सबकी है। सिर्फ आदमी की ही तो नहीं। आदमी ने इसको टुकड़ों में काटकर मालिकाना हक जताया है.....किसी चिड़िया ने तो नहीं। चिड़िया आखिर घौंसला बनाने के लिए जमीन माँगे भी तो किससे ...?"

"बेटा मुझे लगता है की तेरा माथा सही में खराब हो चुका है.....तुझे किसी पागलखाने में भर्ती करवा आऊँ तो कम से कम तुझसे मेरा पिंड तो छूटे....।"

रामप्रसाद की माँ बड़बड़ाते हुए कमरे से बाहर निकल गयीं। चिड़िया उस घौंसले को फिर से बनाने में जुट गयी जिसे माँ ने तोड़ा था।

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