भगवान तुम्हें जिंदगी में खूब खुश रखेगा
ये घटना है जब रामप्रसाद आठवीं कक्षा में पढ़ता था। रामप्रसाद अपने पिता के साथ शहर से गाँव लौट रहा था। बस में ज्यादा भीड़ तो नहीं थी, लेकिन कोई सीट खाली भी नहीं थी। रामप्रसाद के पिता ने हमेशा की तरह अपनी सीट पर रामप्रसाद को बैठा रखा था और खुद खड़े थे। जब बस चलने ही वाली थी, तभी एक बूढ़ी औरत बस में चढ़ी। बूढ़ी औरत बस के आगे के दरवाजे से चलती हुयी पीछे तक आ पहुंची मगर किसी ने उसे बैठने को सीट नहीं दी। जब बूढ़ी औरत रामप्रसाद के पास तक आ गयी तो रामप्रसाद ने मन ही मन अनुमान लगा लिया की अब तो पक्की सीट उसके हाथ से फिसली, क्योंकि वो पिता के स्वभाव से भली भांति परिचित था। दीनदयाल जी ने भी ज्यादा देर ना लगाते हुये रामप्रसाद से कहा " बेटा अपना गाँव ज्यादा दूर नहीं है, तुम्हारी सीट पर दादी को बैठने दो....।" रामप्रसाद ने ना चाहते हुये भी सीट बूढ़ी औरत को दे दी। जब रामप्रसाद गाँव पहुँच गया तो उसने अपने पिता से शिकायती अंदाज में पूछा " बापू आप हर बार मुझे बस में खड़ा कर देते हो.......आइंदा मैं आप के साथ कहीं नहीं जाऊंगा। जब पिछली बार अपने साथ मेरी दादी माँ शहर गयी थी, तब उन्हे तो किसी ने भी सीट नहीं दी थी.....और आप हमेशा मेरी सीट दूसरों को दिलवा देते हो.........।"
"देखो बेटा, कभी भी नेक काम के बदले में कुछ चाहने से उसका असर कम हो जाता है। हमें कोई सीट दे या ना दे इस से क्या फरक पड़ता है....लेकिन तुम्हें तो सीट जरूरतमन्द को दे देनी चाहिए..........तुम्हारे नेक कामों के बदले भगवान तुम्हें जिंदगी में खूब खुश रखेगा..........चलो अब घर चलो, वहाँ खाट पर मजे से बैठना।"
दीनदयाल जी ने रामप्रसाद के सिर पर हाथ फेर कर मुसकुराते हुये रामप्रसाद को जवाब दिया।
◘◘◘
Post a Comment
Post a Comment
Your Suggestions are valuable for me.