डाक्टर राजीव चतुर्वेदी, पीएचडी, अंग्रेजी साहित्य
बात उस वक़्त की है जब रामप्रसाद अंग्रेजी साहित्य में एमए कर रहा था। एक रोज उसके मित्र ने बताया की एक प्रोफेसर साहब हैं जो काफी अच्छा पढ़ाते हैं। शहर में उनसे ज्यादा अंग्रेजी का विद्वान दूसरा कोई नहीं है सो उसे मार्गदर्शन के लिए उनसे संपर्क करना चाहिए।
सर्दियों का समय था सो रामप्रसाद पूरा इंतजाम कर प्रोफ़ेसर साहब के घर पहुँचा। पहुँचने पर रात होने को आई थी। घर के मुख्य दरवाजे पर एक तख्ती लटकी थी जिस पर लिखा था 'डाक्टर राजीव चतुर्वेदी, पीएचडी, अंग्रेजी साहित्य'। रामप्रसाद के घंटी बजाने पर प्रोफेसर साहब के नौकर ने बाहर आकर बताया कि अभी अंदर कक्षाएं चल रही हैं, थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। रामप्रसाद ने देखा की ठिठुरन भरी रात में एक बूढ़ी औरत खुले आँगन में ही गद्दा बिछाकर सो रही थी। नौकर से इस बारे में पूछने पर उसने कहा "वो प्रोफेसर साहब की माँ हैं। इस बार विद्यार्थी कुछ ज्यादा ही आ गए इसलिए रात के नौ बजे तक वो यहीं सोती है, जहाँ वो सोती हैं वहाँ कक्षाएं चल रही हैं। कक्षाएं पूरी होने के बाद वो अंदर कमरे में सोने जाती हैं..........।"
नौकर अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि अचानक ही रामप्रसाद ने साइकिल उठाई और वापस जाने लगा । रामप्रसाद ने जाते जाते मुड़कर दरवाजे पर लटकती तख्ती को देखा जिस पर लिखा था 'डाक्टर राजीव चतुर्वेदी, पीएचडी, अंग्रेजी साहित्य' ।
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